अथाह
"कुछ अनकही- कुछ अनसुनी बातों का सागर "
Friday, February 27, 2009
एक प्यारी सी मुस्कान के लिए
अचानक एक दिन यूँ मिली वो
जैसे कहीं जूही की कली खिली हो
छोटी सी पर सुंदर सी ऐसी लगी वो
जैसे सुंदर गुलाब की पंखुडी हो।
बन कर बदरी ऐसे छाई वो
सहरा में जीवन जैसे लाई हो.
सजती है होंठों पर मेरे हरदम
बन
कर मुस्कान ऐसे छाई वो।
1 comment:
संगीता पुरी
said...
बहुत सुंदर...
February 27, 2009 at 11:21 PM
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1 comment:
बहुत सुंदर...
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