अथाह
"कुछ अनकही- कुछ अनसुनी बातों का सागर "
Saturday, February 28, 2009
यादें
लो फ़िर मैं आज इधर से गुजरा
फ़िर वही राह , वही घर, वही विराना
दूर दूर तक रास्तों पर बिछी धूल
और अक्श क़दमों के उन पर उभरे हुए
जैसे एक सदी गुजरी हो हमको मिले हुए
तू बदली , मैं बदला , बदला कसा हर फिकरा
बरबस तेरी याद आई
जब मैं इधर से गुजरा ।
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