मधुर वीणा के झंकृत्त स्वर से
तेरे मधुर मधुर उदगार
किन आशाओं संग ले आई हो
तुम प्रियतम हमको इस पार
अंजान डगर, अंजान नगर
अंजाना सा है ये संसार
किन आशाओं संग ले आई हो
तुम प्रियतम हमको इस पार
नेत्र सजल है सपनो का बल है
ओर दुखों का है संहार
किन आशाओं संग ले आई हो
तुम प्रियतम हमको इस पार
मैं अचम्भित बोल रहा हूँ
संग पवन के डोल रहा हूँ
पग-तल धरा नही दिखती है
उपर नभ का नही विस्तार
किन आशाओं संग ले आई हो
तुम प्रियतम हमको इस पार
प्रेम यहाँ बस एक कर्म है
ओर करुणा ही लगे धर्म है
लगे देश ना लगे परिवार
किन आशाओं संग ले आई हो
तुम प्रियतम हमको इस पार
मैं तो बस संग चली हूँ
तेरे रागों मैं हि ढली हूँ
तुम तो सदा यहीं रहते थे
अपने गीतों मैं कहते थे
ला दो मुझको कोई ऐसा उपहार
यहीं रहोगे गीत लिखोगे
अब नही करोगे तुम इनकार
इसआशा संग ले आई हूँ
मैं प्रियतम तुमको इस पार॥
मैं प्रियतम तुमको इस पार॥
Saturday, March 28, 2009
Tuesday, March 24, 2009
परीक्षण
आओ,मिलकर एक खेल खेलें
ये बच्चा हंस रहा है चलो रुलाते हैं!
पहला, काटो चिकोटी,
हैं! ये क्या? रोया नही? शायद काया है
मोटी दूसरा,: ये लो काँटा, चुभो डालो
काँटे से भेदी गई उस कोमल की काया
हल्का सा चिहुका,नयन तरेरे सबको देखा
पुनः रेत का घर बनाने लगा
आश्चर्य !! दर्द नही हुआ होगा क्या?
सभी एक दूजे को तकने लगे
बड़ा ढीढ़ है,रोता नही बकने लगे
क्रूरता बढ़ गई नर पिशाच बन गया
तीसरा, तलवार उठा लाया
चलो काट कर देखें इसका सीना
कैसे सीखा दुख में इसने जीना?
सभी ने एक दूजे को देखा
हृदय से मिट गयी हय की रेखा
और बच्चे को देखो,मधुर मुस्कान चेहरे पर लिए,
अभी भी घर बनाने में मस्त-व्यस्त है
खच्चाक !!!!!! हाय काट डाला उस कोमल को
प्रकृति मुख देखती रही
उपर,ईश्वर ने थोड़ा झूक कर देखा
बस एक काल को दया आई
उस नन्हे को उठा ले गया अपनी गोद में
नीचे परीक्षण जारी था
पहला, कलेजा तो काला ही है
दूसरा, रुधिर भी लाल है
तीसरा, काटने से साँस भी थम गई
फिर रोया क्यूँ नही भाई ?
हा भाई! हंस पड़ा नन्हे का दिल खिलखिलाकर
सन्नाटा!!!....सभी अवाक....!!!
एक ने हिम्मत दिखलाई पूछा तुझे क्यूँ हँसी आई
बच्चा , मुझे इतनी निर्ममता से काट डाला
फिर भी कहता है भाई,
अरे,अरे तुझ से तो अच्छा करे कर्म कसाई ,
कम से कम वो तो ना कहे बकरे को भाई है
पूछता है क्यूं हँसी आई?
पर तू रोता क्यूँ नही था?
ये मुझ से पहले पूछा होता
काटने से पहले चेहरा नही, मेरा मन पढ़ा होता
बतलाता क्यूँ नही रोया दर्द भी हुआ ,चुभन भी हुई
पर रो नही सकता था जानते हो किसलिए
मेरा घर मेरे आंशुओं में ना बह जाए इसलिए
निशब्दता!!! सभी मुँह तकने लगे
ये तो सोचा नही था, बकने लगे
हमने जिसको इसका खेल समझ लिया था
उसीको इसने जीवन समर्पित किया था
परंतु अब क्या किया जाए
पश्चाताप ...पर कैसे?
चलो यहाँ एक मकबरा बनायें और उस पर दो फूल चढ़ायें
सब के चेहरे पर शांति थी...........
ये बच्चा हंस रहा है चलो रुलाते हैं!
पहला, काटो चिकोटी,
हैं! ये क्या? रोया नही? शायद काया है
मोटी दूसरा,: ये लो काँटा, चुभो डालो
काँटे से भेदी गई उस कोमल की काया
हल्का सा चिहुका,नयन तरेरे सबको देखा
पुनः रेत का घर बनाने लगा
आश्चर्य !! दर्द नही हुआ होगा क्या?
सभी एक दूजे को तकने लगे
बड़ा ढीढ़ है,रोता नही बकने लगे
क्रूरता बढ़ गई नर पिशाच बन गया
तीसरा, तलवार उठा लाया
चलो काट कर देखें इसका सीना
कैसे सीखा दुख में इसने जीना?
सभी ने एक दूजे को देखा
हृदय से मिट गयी हय की रेखा
और बच्चे को देखो,मधुर मुस्कान चेहरे पर लिए,
अभी भी घर बनाने में मस्त-व्यस्त है
खच्चाक !!!!!! हाय काट डाला उस कोमल को
प्रकृति मुख देखती रही
उपर,ईश्वर ने थोड़ा झूक कर देखा
बस एक काल को दया आई
उस नन्हे को उठा ले गया अपनी गोद में
नीचे परीक्षण जारी था
पहला, कलेजा तो काला ही है
दूसरा, रुधिर भी लाल है
तीसरा, काटने से साँस भी थम गई
फिर रोया क्यूँ नही भाई ?
हा भाई! हंस पड़ा नन्हे का दिल खिलखिलाकर
सन्नाटा!!!....सभी अवाक....!!!
एक ने हिम्मत दिखलाई पूछा तुझे क्यूँ हँसी आई
बच्चा , मुझे इतनी निर्ममता से काट डाला
फिर भी कहता है भाई,
अरे,अरे तुझ से तो अच्छा करे कर्म कसाई ,
कम से कम वो तो ना कहे बकरे को भाई है
पूछता है क्यूं हँसी आई?
पर तू रोता क्यूँ नही था?
ये मुझ से पहले पूछा होता
काटने से पहले चेहरा नही, मेरा मन पढ़ा होता
बतलाता क्यूँ नही रोया दर्द भी हुआ ,चुभन भी हुई
पर रो नही सकता था जानते हो किसलिए
मेरा घर मेरे आंशुओं में ना बह जाए इसलिए
निशब्दता!!! सभी मुँह तकने लगे
ये तो सोचा नही था, बकने लगे
हमने जिसको इसका खेल समझ लिया था
उसीको इसने जीवन समर्पित किया था
परंतु अब क्या किया जाए
पश्चाताप ...पर कैसे?
चलो यहाँ एक मकबरा बनायें और उस पर दो फूल चढ़ायें
सब के चेहरे पर शांति थी...........
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