मधुर वीणा के झंकृत्त स्वर से
तेरे मधुर मधुर उदगार
किन आशाओं संग ले आई हो
तुम प्रियतम हमको इस पार
अंजान डगर, अंजान नगर
अंजाना सा है ये संसार
किन आशाओं संग ले आई हो
तुम प्रियतम हमको इस पार
नेत्र सजल है सपनो का बल है
ओर दुखों का है संहार
किन आशाओं संग ले आई हो
तुम प्रियतम हमको इस पार
मैं अचम्भित बोल रहा हूँ
संग पवन के डोल रहा हूँ
पग-तल धरा नही दिखती है
उपर नभ का नही विस्तार
किन आशाओं संग ले आई हो
तुम प्रियतम हमको इस पार
प्रेम यहाँ बस एक कर्म है
ओर करुणा ही लगे धर्म है
लगे देश ना लगे परिवार
किन आशाओं संग ले आई हो
तुम प्रियतम हमको इस पार
मैं तो बस संग चली हूँ
तेरे रागों मैं हि ढली हूँ
तुम तो सदा यहीं रहते थे
अपने गीतों मैं कहते थे
ला दो मुझको कोई ऐसा उपहार
यहीं रहोगे गीत लिखोगे
अब नही करोगे तुम इनकार
इसआशा संग ले आई हूँ
मैं प्रियतम तुमको इस पार॥
मैं प्रियतम तुमको इस पार॥
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