Tuesday, May 26, 2009

मैं तुझ संग मोहब्बत करने चला था

पंख सपनो को अपने देने चला था
जीवन को खुशियों से भरने चला था
मुक़्दर को अपने पलटने चला था
मैं तुझ संग मोहब्बत करने चला था

मोहब्बत की हमारी कीमत ही क्या थी
हँसी की हमारी ज़रूरत कहाँ थी
लुटाने जाने मैं क्या क्या चला था
मैं तुझ संग मोहब्बत करने चला था

वही चोट बाहर वही ज़ख़्म अंदर
तेरी वफ़ा का अजब है ये मंज़र
ज़ख़्मों को मैं तो भरने चला था
मैं तुझ संग मोहब्बत करने चला था

रुसवाइयों का ये आलम गजब है
तन्हाइयों का बस मोहब्बत सबब है
गुस्ताख़ी कैसे मैं करने चला था
मैं तुझ संग मोहब्बत करने चला था

Saturday, May 16, 2009

बंधन

बंद कमरे की दीवारों पे
क्या तो मैं लिख पाऊँगा
आडी तिरछी लकीरों को
खींच कर खुश हो जाऊँगा

कौन खोले ये दरवाजा
जो बाहर मुझे दिखाई दे
झाँक कर कोने- कोने मैं
बस ये धूल ही तो पाऊँगा

किस कदर है ये बेबसी
जो खोलूं खुद किवाड़ ना
बैठे-बैठे, सोचकर के मैं
ये ज़िंदगी ही तो बिताऊँगा

झाँकना जो चाहूं मैं
परदे खिड़कियों पर हैं लगे
पालूँ ख्वाहिशें भी तो कैसे
बंद हर राह मैं जो पाऊँगा

कौन जाने किस जुर्म में
बंद दीवारों में, मैं हो गया
हवा में लटकाकर के लात
कुछ देर ही तो चल पाऊँगा

बेजान सी अब ये चीज़ें
धिक्कारती हैं मुझको ये
निकलना है तो निकल ले अब
वरना घुटन ही से मर जाऊँगा

Friday, May 8, 2009

किनारे-किनारे

मिली मंज़िल किसी को
तो कोई तोड़ लाया है तारे
सब डूबे तैरे मौज से लेकिन
चलता रहा मैं किनारे -किनारे

ख्यालों की कलियाँ खिलती कहाँ
निरालों को दुनिया मिलती कहाँ
हवा के महल आरज़ू के सहारे
गिरे तो टूटे, कुछ थे यूँ नज़ारे
सब डूबे तैरे......

बनते तो तब जब हम बिगड़ते
पाते ही कुछ जब हम झगड़ते
बस करते रहे दूर ही से इशारे
जीते ना कुछ ना कुछ हैं हारे
सब डूबे तैरे...

हॅश्र मेरा होना क्या था
मिला क्या था, खोना क्या था
फ़ुर्सत की घड़ियों मैं गिनता था तारे
आया था यूँ ही और यूँ ही गया रे
सब डूबे तैरे ........

Tuesday, May 5, 2009

मन

अंधेरे से निकलो
उजाले मैं आओ
मनको ना अपने
तुम इतना भटकाओ

चाहो जिसे कब
तुम वो पाओ
बेहतर इसे अब
तुम ही समझाओ

सुनोगे जो इसकी
तो पछताना पड़ेगा
बिना नाम दुनिया
से जाना पड़ेगा

ये नासमझ जैसे
बच्चे जैसा अड़ा है
ये माटी का
एक कच्चा घड़ा है

चाहो तुम जैसे
इसको बनाओ
बैठा दो फलक पे
या ज़मीन से मिलाओ

उंगली पकड़ कर
इसे चलना सिख़ाओ
हिसाबों की दुनिया का
इसे पहाड़ा पढ़ाओ

जो रखोगे पीछे
तब आगे बढ़ेगा
अकारण ही वरना
ये हर दर अड़ेगा

चमकेगा एक दिन
ये इस जग मैं
डालोगे बेड़ियाँ जो
इसके पग मैं

ये सच है
ये सच्चा है
थोड़ा बुरा है
पर ज़्यादा अच्छा है

ग्यान गीता से
इसको अवगत कराओ
मर्यादा की शिक्षा
इसको दिलाओ

सयम की समता
तुम इसको बताओ
धरम से विवेक
तुम इसका जगाओ

दुनिया मैं धन प्रेम
सबसे बड़ा हैं
सहारे बिना इसके
ना कोई खड़ा है

पर प्रेम भी
ये अकेला बड़ा है
सहारे अगर ना
करुणा के खड़ा है

बोल दो प्रेम के
इसको भी बताओ
करुणा की इसको
तुम मूर्त बनाओ

अभिमन्यु नही इसको
अर्जुन है बनना
हर चकवयूह से है
इसको निकलना

इसको तुम ऐसा
एक युगांतर बनाओ
कलयुग को बदलो
फिर सतयुग बनाओ