Tuesday, May 26, 2009

मैं तुझ संग मोहब्बत करने चला था

पंख सपनो को अपने देने चला था
जीवन को खुशियों से भरने चला था
मुक़्दर को अपने पलटने चला था
मैं तुझ संग मोहब्बत करने चला था

मोहब्बत की हमारी कीमत ही क्या थी
हँसी की हमारी ज़रूरत कहाँ थी
लुटाने जाने मैं क्या क्या चला था
मैं तुझ संग मोहब्बत करने चला था

वही चोट बाहर वही ज़ख़्म अंदर
तेरी वफ़ा का अजब है ये मंज़र
ज़ख़्मों को मैं तो भरने चला था
मैं तुझ संग मोहब्बत करने चला था

रुसवाइयों का ये आलम गजब है
तन्हाइयों का बस मोहब्बत सबब है
गुस्ताख़ी कैसे मैं करने चला था
मैं तुझ संग मोहब्बत करने चला था

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