अक्सर साथ चली आती है
एक याद और एक तुम
अक्सर हम पर मुस्काती है
एक स्नेहा और एक तुम
सूरज ढलने तक वो बातें
तारों की छाँव मैं मुलाक़ातें
अक्सर चाँद के संग ढलती है
एक पूर्णिमा और एक तुम
सपनो के जहाँ छूटे हैं
आशाओं के मकान टूटे हैं
अक्सर खंडहरों मैं घूमती है
एक बेबसी और एक तुम
कैसे मनके की लड़ियों से
अश्रु ढुलक ढुलक आते हैं
अक्सर इन में छुपी होती है
एक वेदना और एक तुम
तुम जब से ना रहे हमारे
बदले तब से सब नज़ारे
अक्सर नज़रों को चुभती है
एक बेचैनी और एक तुम
कल जब हम भी ना रहेंगे
तब शायद ये सब समझेंगे
अक्सर मरने के बाद मिलती है
एक खुशी ओर एक तुम
No comments:
Post a Comment