Wednesday, June 17, 2009

और एक तुम

अक्सर साथ चली आती है
एक याद और एक तुम
अक्सर हम पर मुस्काती है
एक स्नेहा और एक तुम

सूरज ढलने तक वो बातें
तारों की छाँव मैं मुलाक़ातें
अक्सर चाँद के संग ढलती है
एक पूर्णिमा और एक तुम

सपनो के जहाँ छूटे हैं
आशाओं के मकान टूटे हैं
अक्सर खंडहरों मैं घूमती है
एक बेबसी और एक तुम

कैसे मनके की लड़ियों से
अश्रु ढुलक ढुलक आते हैं
अक्सर इन में छुपी होती है
एक वेदना और एक तुम

तुम जब से ना रहे हमारे
बदले तब से सब नज़ारे
अक्सर नज़रों को चुभती है
एक बेचैनी और एक तुम

कल जब हम भी ना रहेंगे
तब शायद ये सब समझेंगे
अक्सर मरने के बाद मिलती है
एक खुशी ओर एक तुम

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