Friday, June 26, 2009

सुबोध

मार्ग मैं अवरोध बहुत हैं
चलने मैं कठिनाई है होती
यहाँ गतिरोध बहुत हैं


दुर्गम से दुर्गतम हो रहा
गहन मैं ये सघन हो रहा
डर डर कर पग धरते हैं
जाएँ ना प्रकाश माँगने
सब अपनी अपनी करते हैं
यहाँ विरोध बहुत हैं

दियासलाई जले एक हाथ
एक हाथ ले थाम मशाल
एक हाथ चिंगारी है फडके
एक तो सीधा चाँद पे भड़के
कैसे शशि भी दे लौ पूरी
यहाँ अनुरोध बहुत हैं

राही को ना फिकर हमराह की
सब एक दूजे पर पग धर रहे
चेतना कैसे विलुप्त हो चुकी
सब एक दूजे से हैं लड़ रहे
मंज़िल पर जाने की है जल्दी
यहाँ अबोध बहुत हैं


तिम गहन ये छंट सकता है
मार्ग सुगम फिर हो सकता है
कोई तो भानु उगा सकता
दिशा का भान करा सकता है
पथप्रदर्शक कोई तो होगा
यहाँ सुबोध बहुत हैं

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