Saturday, July 4, 2009

कब आई थी आख़िरी याद

दिवस कई बीत चुके
जब हुई थी तुमसे मुलाकात
लकिन अब याद नही आता है
कब आई थी आख़िरी याद

तुम भी शायद भूल चुकी हो
क्या की थी कभी हमने बात
अब बेचैन नही करती होगी
तुमको छोटी सी वो मुलाकात

चल रहे थे एक ही पथ पर
एक ही गंतव्य को जाने को
यूँ ही कर ली थी हमने बातें
अपना समय बिताने को

उसी दिवस से छवि तुम्हारी
मन मैं मेरे समाई थी
मेरे नयंनो को देख देख कर
जब तुम थोड़ा सकूचाई थी

एक मोड़ पर फिर हम दोनो
पल भर मैं ही दूर हुए
और पलवित हुए स्वपन वो
छण भर मैं ही चूर हुए

चल पड़े फिर अपनी दिशाएं
अपनी मंज़िल पाने को
कहाँ रहा फिर वक़्त किसे
किसी के समुख आने को

आज जब जिजीविषा से
मुझको थोड़ा सा विश्राम मिला
जीवन के झंझावतों से
याद करने का काम मिला

तब पलों की गठरी से
यादों को किया मैने आज़ाद
उन्ही यादों में कहीं छुपी थी
हमारी वो छोटी सी मुलाकात

क्या तुमको भी इस जीवन मैं
कभी इतना समय मिला होगा
जब तुमने अपनी यादों मैं
मुझ पथिक को चुना होगा

क्या तुमको मज़िल पे जाते जाते
आज भी आती होगी ये याद
फिर मिलने की मैने तुमसे
की थी एक छोटी सी फरियाद

मैं तो उस छण के नयन मिलन को
बर्ष कई करता रहा याद
लकिन अब याद नही आता है
कब आई थी आख़िरी याद