एको बोली, एको वेश
एको रंगा रंगा अनेक
एको गाँव, एको देश
एको संग चले अनेक
एको स्तुति ,एको गान
एको रूपा लगे भगवान
एको धर्म, एको ग्यान
एको बनायो कर्म महान
एको नर, एको नार
एको सम रहे व्यवाहर
एको दरिद्र ,एको दीन
एको रहियो हृदय मलिन
एको याचक, एको दाता
एको रखो भाग्या विधाता
एको सत, एको वाच एको
निकले मुख से वाक्
एको जीवन एको मृत्यु
एको राख्यो अपना शत्रु
Monday, April 27, 2009
ढलती जिन्दगी
कदम दर कदम ज़िंदगी जा रही है
हर तरफ़ बिखरी हैं राहें
मंज़िल नही नज़र आ रही है
कदम दर कदम ज़िंदगी जा रही है
यादों के झरोखों से वक़्त गुज़रता है
मुठ्ठीमें रेत की तरह फिसलता है
बहाने झूठी खुशियों के बुला रही है
कदम दर कदम ज़िंदगी जा रही है
कोई साथ दे इसका तो कैसे
ये महल हो एक सपनो का जैसे
हर मोड़ मंज़िल का गीत गा रही है
कदम दर कदम ज़िंदगी जा रही है
यूँ तो कर ले भरोसा तू इसका
पर ये ही जाने ये दे साथ किसका
हमको तो यूँ ही बहलाए जा रही है
बस चन्द यादों से सहलाए जा रही है
करता हूँ यकीन ओर ये इतरा रही है
कदम दर कदम ज़िंदगी जा रही है
हर तरफ़ बिखरी हैं राहें
मंज़िल नही नज़र आ रही है
कदम दर कदम ज़िंदगी जा रही है
यादों के झरोखों से वक़्त गुज़रता है
मुठ्ठीमें रेत की तरह फिसलता है
बहाने झूठी खुशियों के बुला रही है
कदम दर कदम ज़िंदगी जा रही है
कोई साथ दे इसका तो कैसे
ये महल हो एक सपनो का जैसे
हर मोड़ मंज़िल का गीत गा रही है
कदम दर कदम ज़िंदगी जा रही है
यूँ तो कर ले भरोसा तू इसका
पर ये ही जाने ये दे साथ किसका
हमको तो यूँ ही बहलाए जा रही है
बस चन्द यादों से सहलाए जा रही है
करता हूँ यकीन ओर ये इतरा रही है
कदम दर कदम ज़िंदगी जा रही है
Thursday, April 9, 2009
माँगना फ़ितरत है हमारी
बेला जो मृत्यु की है उसकी
घड़ी वो याचना की है हमारी
माँग लेंगे टूटते तारे से भी
माँगना क्यूँ की फ़ितरत है हमारी
नही सोचेंगे पीड़ा उसकी
जो बिछूड़ रहा है अपनो से
नही समझेंगे दुख उसका
जो जुदा हो रहा सपनो से
वो जो चमकता था नभ मैं
दीप्तिमान था जो सब मैं
क्या फिर वो चमक पाएगा?
अपनी लौ मैं लौट आएगा?
पर हमको क्या लेना उस से
आलोकित हम थे जिसके जस से
स्वार्थ अपना सिध करेंगे
खुदको हम समृद्ध करेंगे
उसके लिए हो चाहे ये बेबसी
पर मुझको मिल जाए मेरी प्रियसि
उसपर लगे चाहें कितने भी घात
पर हमपर ना कभी हो उल्का पात
हमको क्या है उसके दुख से
हम रहें खुश अपने सुख से
हम निरंतर मनन करेंगे
माँगने का प्रयत्न करेंगे
कर देना पूरी दुआ हमारी
जान भले ही जाए तुम्हारी
माँग लेंगे टूटते तारे से भी
माँगना क्यूँ की फ़ितरत है हमारी
घड़ी वो याचना की है हमारी
माँग लेंगे टूटते तारे से भी
माँगना क्यूँ की फ़ितरत है हमारी
नही सोचेंगे पीड़ा उसकी
जो बिछूड़ रहा है अपनो से
नही समझेंगे दुख उसका
जो जुदा हो रहा सपनो से
वो जो चमकता था नभ मैं
दीप्तिमान था जो सब मैं
क्या फिर वो चमक पाएगा?
अपनी लौ मैं लौट आएगा?
पर हमको क्या लेना उस से
आलोकित हम थे जिसके जस से
स्वार्थ अपना सिध करेंगे
खुदको हम समृद्ध करेंगे
उसके लिए हो चाहे ये बेबसी
पर मुझको मिल जाए मेरी प्रियसि
उसपर लगे चाहें कितने भी घात
पर हमपर ना कभी हो उल्का पात
हमको क्या है उसके दुख से
हम रहें खुश अपने सुख से
हम निरंतर मनन करेंगे
माँगने का प्रयत्न करेंगे
कर देना पूरी दुआ हमारी
जान भले ही जाए तुम्हारी
माँग लेंगे टूटते तारे से भी
माँगना क्यूँ की फ़ितरत है हमारी
Saturday, April 4, 2009
नदिया
ओ, धरा की रक्त वाहिनी
रंग स्वेत और विभा सुहावनी
अगणित जीवों की जीवनदयनी
अद्भुत भावों की कामायनी
कल कल निस्चल मचाती शोर
नदिया, तुम बहती चली किस ओर
रूप अनेक हैं नाम अनेक
विष्मित रह जाते सब तुमको देख
असंख्य सभ्यताओं की तुम आधार
पार जाएँ पर पाएँ ना पार
बनाती जाती नित-नित नये छोर
नदिया, तुम बहती चली किस ओर
वन-उपवन और खेत खलिहान
बिन तेरे ना बने महान
खड़े आलय कितने तेरे सहारे
बीच पाहन तुझमें ज्यूँ तारे
पवन सम्रिधि फैलती सब ओर
नदिया, तुम बहती चली किस ओर
जब विरहन जोती बाट किनारे
तब लहरें तेरी पिया पुकारे
तेरे तट हैं दृश्य मनोहर
डूबे तुझ मैं जब दिनकर
तुम सरिता हो या कोई चितचोर
नदिया, तुम बहती चली किस ओर
देखो कभी ना तोड़ना किनारा
धैर्य का ना छोड़ना सहारा
मिटा देता ओर मिट जाता है
जो लालच कभी बढ़ जाता है
तुम देती शिक्षा करती भावविभोर
नदिया , तुम बहती चली किस ओर
रंग स्वेत और विभा सुहावनी
अगणित जीवों की जीवनदयनी
अद्भुत भावों की कामायनी
कल कल निस्चल मचाती शोर
नदिया, तुम बहती चली किस ओर
रूप अनेक हैं नाम अनेक
विष्मित रह जाते सब तुमको देख
असंख्य सभ्यताओं की तुम आधार
पार जाएँ पर पाएँ ना पार
बनाती जाती नित-नित नये छोर
नदिया, तुम बहती चली किस ओर
वन-उपवन और खेत खलिहान
बिन तेरे ना बने महान
खड़े आलय कितने तेरे सहारे
बीच पाहन तुझमें ज्यूँ तारे
पवन सम्रिधि फैलती सब ओर
नदिया, तुम बहती चली किस ओर
जब विरहन जोती बाट किनारे
तब लहरें तेरी पिया पुकारे
तेरे तट हैं दृश्य मनोहर
डूबे तुझ मैं जब दिनकर
तुम सरिता हो या कोई चितचोर
नदिया, तुम बहती चली किस ओर
देखो कभी ना तोड़ना किनारा
धैर्य का ना छोड़ना सहारा
मिटा देता ओर मिट जाता है
जो लालच कभी बढ़ जाता है
तुम देती शिक्षा करती भावविभोर
नदिया , तुम बहती चली किस ओर
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