Thursday, April 9, 2009

माँगना फ़ितरत है हमारी

बेला जो मृत्यु की है उसकी
घड़ी वो याचना की है हमारी
माँग लेंगे टूटते तारे से भी
माँगना क्यूँ की फ़ितरत है हमारी

नही सोचेंगे पीड़ा उसकी
जो बिछूड़ रहा है अपनो से
नही समझेंगे दुख उसका
जो जुदा हो रहा सपनो से

वो जो चमकता था नभ मैं
दीप्तिमान था जो सब मैं
क्या फिर वो चमक पाएगा?
अपनी लौ मैं लौट आएगा?

पर हमको क्या लेना उस से
आलोकित हम थे जिसके जस से
स्वार्थ अपना सिध करेंगे
खुदको हम समृद्ध करेंगे

उसके लिए हो चाहे ये बेबसी
पर मुझको मिल जाए मेरी प्रियसि
उसपर लगे चाहें कितने भी घात
पर हमपर ना कभी हो उल्का पात

हमको क्या है उसके दुख से
हम रहें खुश अपने सुख से
हम निरंतर मनन करेंगे
माँगने का प्रयत्न करेंगे

कर देना पूरी दुआ हमारी
जान भले ही जाए तुम्हारी
माँग लेंगे टूटते तारे से भी
माँगना क्यूँ की फ़ितरत है हमारी

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