Saturday, October 10, 2009

हम तुमको तब भी चाहेंगे

जब जीवन की शाम ढलेगी
मृत्यु नींद सी जब चढ़ेगी
जब विलुप्त स्वपन हो जाएँगे
हम तुमको तब भी चाहेंगे

नयन दृष्टि जब खो जाएगी
सृष्टि भी ओझल हो जाएगी
जब रंग काले हो जाएँगे
हम तुमको तब भी चाहेंगे

बास सुबास जब खो रही होगी
रसना स्वाद पर रो रही होगी
जब कर्ण बहरे हो जाएँगे
हम तुमको तब भी चाहेंगे

ज़र ज़र देह जब लेटी होगी
किस्मत के संग हेठी होगी
जब प्राण पखेरू उड़ जाएँगे
हम तुमको तब भी चाहेंगे

लोक जब परलोक हो जायेगा
मन भी वापस ना आ पायेगा
जब निपट अकेले हो जाएँगे
हम तुमको तब भी चाहेंगे

संदेह यदि फिर भी है तुमको
तो सुनो यह कसम है हमको
यदि कोई दूसरा जीवन पाएँगे
हम तुमको तब भी चाहेंगे

Thursday, October 8, 2009

झूठे रिश्ते

अजीब रिश्तों मैं उलझ गई है ज़िंदगी
ज़िंदा तो सब है पर मर गई है ज़िंदगी
क्यूँ इस कदर बेबस हो चुके हैं हम
की बहाने ढूँढती है मुस्कुराने के ज़िंदगी

रिश्तों की डोर मैं तनाव इतना ज़्यादा है
इसको तोड़ने का ही जैसे सबका इरादा है
क्यूँ खींचते हो रिश्ते जब मन मानता नही
तोड़ दो ये धागा जब कोई बाँधता नही

कर लिया जब फ़ैसला तो अब सोचते हो क्यूँ?
निभा सकते नही हो जब तो जोड़ते हो क्यूँ?
सोचते जिसको घर हो, बन चुका है मकान वो
फिर रिश्तों का इसमें बाकी रखते हो समान क्यूँ?

अजीब कशमकश मैं ना तू अपनी ज़िंदगी गुज़ार
मर चुके रिश्ते जब , ना बचा तू ये मज़ार
यूँ ना रह ज़िंदा की ना कर पाए तू बंदगी
और फिर ढूँढे बहाने भी मुस्कुराने के ज़िंदगी