Friday, June 26, 2009

सुबोध

मार्ग मैं अवरोध बहुत हैं
चलने मैं कठिनाई है होती
यहाँ गतिरोध बहुत हैं


दुर्गम से दुर्गतम हो रहा
गहन मैं ये सघन हो रहा
डर डर कर पग धरते हैं
जाएँ ना प्रकाश माँगने
सब अपनी अपनी करते हैं
यहाँ विरोध बहुत हैं

दियासलाई जले एक हाथ
एक हाथ ले थाम मशाल
एक हाथ चिंगारी है फडके
एक तो सीधा चाँद पे भड़के
कैसे शशि भी दे लौ पूरी
यहाँ अनुरोध बहुत हैं

राही को ना फिकर हमराह की
सब एक दूजे पर पग धर रहे
चेतना कैसे विलुप्त हो चुकी
सब एक दूजे से हैं लड़ रहे
मंज़िल पर जाने की है जल्दी
यहाँ अबोध बहुत हैं


तिम गहन ये छंट सकता है
मार्ग सुगम फिर हो सकता है
कोई तो भानु उगा सकता
दिशा का भान करा सकता है
पथप्रदर्शक कोई तो होगा
यहाँ सुबोध बहुत हैं

Wednesday, June 24, 2009

कवि हाट

एक एक शब्द गूँथ के

माला कविता की लाया हूँ

ले लो, ले लो, भाव ये सुंदर

मैं इन्हें बेचने आया हूँ


ले लो जो तुम मैं बनूँ अभारी

इनका नही मोल कोई भारी

करुणा और प्रेम से ले लो

मैं कवि, नही कोई व्यापारी


ओ मानुष तू इसको ले ले

ये मनुजता बन जाएगी

भर देगी करुंण प्रेम से

ये सब वैर भाव मिटाएगी


ओ साथी तू इसको ले ले

ये हरपल साथ निभाएगी

हर शत्रु फिर मित्र बनेगा

ये इस तरह कंठ लगाएगी


ओ राही तू इसको ले ले

ये हर राह आसान बनाएगी

बनके तेरी मार्गदर्शिका

ये मज़िल तक पहुँचाएगी


ओ बालक तू इसको ले ले

ये खेल-खेल में सिखाएगी

जीवन में सही ग़लत क्या

ये इसका बोध कराएगी


वो श्रमिक तू इसको ले

ये श्रम मैं हाथ बटाएगी

मिल जाएगा फल श्रम का

ये यूँ आवाज़ उठाएगी


वो नेता तू इसको ले ले

ये तेरा भाषण बन जाएगी

कर सके जो कथन तू इसका

ये निश्चित जीत दिलाएगी


ओ प्रेमी तू इसको ले ले

ये तेरा दिल बहलाएगी

कोमल कोमल अर्थों से अपने

ये प्रेमिका को भी मनाएगी


ओ विरहन तू इसको ले ले

ये रात्रि भी कट जाएगी

किसी देश हो प्रियतम तेरा

ये उन तक संदेश पहुँचाएगी


बेच आऊंगा आज मैं सारे

यह कह कर इनको लाया हूँ

ले लो, ले लो, भाव ये सुंदर

मैं इन्हें बेचने आया हूँ


Friday, June 19, 2009

मान लो मेरी बात प्रिया

चुन लेना मेरी पलकों से
तुम खुद अपने ख्वाब प्रिया
अब मैं तो ना दे पाऊँगा
वो पहले सा अनुराग प्रिया

दिया था तुझको एक दिन
संभल सका तुमसे ना प्रिया
अब मान ले मेरी बात को
मत व्यर्थ कर प्रयास प्रिया

वो कोमल मन अब कटु हुआ
बचा नही कोई उल्लास प्रिया
प्रस्थितियों के इस भंवर का
हो चला वो ग्रास प्रिया

मद खोजे जैसे मादकता
क्यूँ खोजे मुझ मैं स्व-अक्श प्रिया
इस दुनियादारी की आँधी ने
बदला मेरा भी आकर प्रिया

कौन सुने अब फाग सावन के
जुब चुल्ले मैं ना आग प्रिया
अपने प्रेम की अग्नि को
दो दूसरा कोई आधार प्रिया

कैसे भेजूँ संदेश पाती मैं
जब छाती मैं सब दले दाल प्रिया
तेरे विरह के पल जो गूँथ ले
ढूँढ ले ऐसा कोई फनकार प्रिया

अब रहा मैं ना प्रेमी कोई
अब नही मुझे मैं वो बात प्रिया
मैं कहाँ रहा अब रसिक रूप का
बन गया मैं आदमजात प्रिया

कहना मेरा मान लो तुम
और मेरा करो परित्याग प्रिया
हम कभी नही मिल पाएँगे
कर लो सच ये स्वीकार प्रिया

चुन लेना मेरी पलकों से
तुम खुद अपने ख्वाब प्रिया
अब मैं तो ना दे पाऊँगा
वो पहले सा अनुराग प्रिया

Wednesday, June 17, 2009

और एक तुम

अक्सर साथ चली आती है
एक याद और एक तुम
अक्सर हम पर मुस्काती है
एक स्नेहा और एक तुम

सूरज ढलने तक वो बातें
तारों की छाँव मैं मुलाक़ातें
अक्सर चाँद के संग ढलती है
एक पूर्णिमा और एक तुम

सपनो के जहाँ छूटे हैं
आशाओं के मकान टूटे हैं
अक्सर खंडहरों मैं घूमती है
एक बेबसी और एक तुम

कैसे मनके की लड़ियों से
अश्रु ढुलक ढुलक आते हैं
अक्सर इन में छुपी होती है
एक वेदना और एक तुम

तुम जब से ना रहे हमारे
बदले तब से सब नज़ारे
अक्सर नज़रों को चुभती है
एक बेचैनी और एक तुम

कल जब हम भी ना रहेंगे
तब शायद ये सब समझेंगे
अक्सर मरने के बाद मिलती है
एक खुशी ओर एक तुम