Wednesday, September 23, 2009

ग़रीब

मेरे दिल की तंगहाली देखो
दुआ में मेरी गाली देखो
हाड़ तोड़ मेहनत करता हूँ
फिर भी पेट है खाली देखो

कुदरत का मैं नही दुलारा
दाता ने भी मुझे दुत्त्कारा
बनी ग़रीबी धरम है देखो
कैसे फूटे करम है देखो

एक झोपड़ी एक चारपाई है
बिस्तर उस पर एक तिहाई है
तकता छेदों से बाट वो देखो
टंगा द्वार पे टाट वो देखो

रात कालिमा भी है उजली
घर में पानी ना है बिजली
प्रगती से हम किनारे देखो
प्रकृति के हम सहारे देखो

दो बच्चों की माँ संग है
उसका भी रंग बदरंग है
लक्ष्मी की मेरी कहानी देखो
बनी कहीं नौकरानी देखो

बड़े से कुछ हौंसला होता है
जब मेरे संग तसला ढोता है
लिपटी चिथड़ों में छोटी देखो
जीवित टुकड़ों में बेटी देखो

श्रम हमारा यूँ फल देता है
आधा भोजन भी कल देता है
हाथों में ये छाले देखो
मुख से छीने निवाले देखो

और देखो हमारी ये लाचारी
हमसे ही जुड़े हर महामारी
मनुष्यता पे शाप है देखो
निर्धानता ये पाप है देखो

जब ईश्वर कोई ग़रीब बनाता
भरपेट भोजन ही धेय बनाता
कुछ भी उसके करीब ना देखो
ग़रीब सिर्फ़ ग़रीब है देखो

Tuesday, September 15, 2009

मुझे इतनी दूर तक जाना है

मुझे इतनी दूर तक जाना है
जहाँ फिर इक दिलरुबा मिले
जाके ऐसी मज़िल को पाना है
मुझे इतनी दूर तक जाना है

जहाँ ना कोई रुसवाई हो
और हो ना कोई तन्हाई
जहाँ मिले ना बेवफा कोई
जहाँ मिले ना कोई हरजाई
जाके वहाँ साज़-ए-दिल बजना है
मुझे इतनी दूर तक जाना है.......

टूटे दिल का ना हो मंज़र
ज़ुबान कोई ना हो खंज़र
जहाँ हर शख्स प्यार हो
जहाँ हर कोई हमारा हो
जाके वहाँ हाल-ए-दिल सुनना है
मुझे इतनी दूर तक जाना है.....

तलाश जाकर जहाँ रुक जाए
और जिंदगी मुकाम इक पा जाए
जहाँ जीना ना चाहूं मैं
जहाँ मुझे मौत आ जाए
जाके वहाँ घर-ए-गुलशन बसाना है
मुझे इतनी दूर तक जाना है............

Monday, September 14, 2009

इंद्रधनुष

उभरा क्षितिज पर इंद्रधनुष कुछ ऐसे
जीवन मैं उभरा नया एक चेहरा हो जैसे
फैले फिर रंग घटा मैं भी कुछ ऐसे
सतरंगी ये उसका हि प्रतिमान हो जैसे

यूँ बूँदों की छम छम के बाद बना है
ज्यूँ अश्रुओं की कोख हि से जन्मा है
देखो प्रकृति ने दिया आकर निराकार को ऐसे
अजन्मे मेरे स्वप्न को देती वह आधार हो जैसे

हर दिशा मैं आशा का रंग यूँ भर गया
ज्यूँ जीवन के रंगो से मैं रंग गया
लाल,हरा,नीला,पीला और कहीं है मटमैला
सुख- दुख, आशा-निराशा सा सब तरफ है फैला

हटा धूँध को यूँ ये आगे आ गया
मुस्काता तेरा चेहरा ज्यूँ दुख पे छा गया
कंपित बिंब फिर धरती को चूमने लगा है ऐसे
कंपन प्यासे अधरों की माथे पे सजती है जैसे

छटा घटा की भी देखो अब यूँ छाई है
नव चेतना ज्यूँ मृत जीवन मैं आई है
नवजात शिशु सा आकाश मैं दिखता है ऐसे
मेरे आँगन मैं आ गया हो मेरा आभास ही जैसे