Monday, September 14, 2009

इंद्रधनुष

उभरा क्षितिज पर इंद्रधनुष कुछ ऐसे
जीवन मैं उभरा नया एक चेहरा हो जैसे
फैले फिर रंग घटा मैं भी कुछ ऐसे
सतरंगी ये उसका हि प्रतिमान हो जैसे

यूँ बूँदों की छम छम के बाद बना है
ज्यूँ अश्रुओं की कोख हि से जन्मा है
देखो प्रकृति ने दिया आकर निराकार को ऐसे
अजन्मे मेरे स्वप्न को देती वह आधार हो जैसे

हर दिशा मैं आशा का रंग यूँ भर गया
ज्यूँ जीवन के रंगो से मैं रंग गया
लाल,हरा,नीला,पीला और कहीं है मटमैला
सुख- दुख, आशा-निराशा सा सब तरफ है फैला

हटा धूँध को यूँ ये आगे आ गया
मुस्काता तेरा चेहरा ज्यूँ दुख पे छा गया
कंपित बिंब फिर धरती को चूमने लगा है ऐसे
कंपन प्यासे अधरों की माथे पे सजती है जैसे

छटा घटा की भी देखो अब यूँ छाई है
नव चेतना ज्यूँ मृत जीवन मैं आई है
नवजात शिशु सा आकाश मैं दिखता है ऐसे
मेरे आँगन मैं आ गया हो मेरा आभास ही जैसे

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