Saturday, September 18, 2010

आशा

आदि अनादि से चली आ रही
अंत अन्नत तक चली जा रही
मन व्यथित और हृदय व्याकुल
आशा निराशा से लड़ी जा रही

तिम गहन की ये मंद रोशनी
व्याकुलता से है मिटी जा रही
मति भरम में उलझी पगली
यथार्थ से है मात खा रही

अश्रु जल की अरी विद्रोहीणी
शुष्क नयन में मिटी जा रही
दुख पर्वत की ये आरोहिणी
देव-शिखर से गिरी जा रही

घोर निराशा बढ़ी जा रही
पर भाग्य से लड़ी जा रही
जग हारे पर ये ना हारे
ये एकाकी ही लड़ी जा रही

आदि अनादि से चली आ रही
अंत अन्नत तक चली जा रही
मन व्यथित और हृदय व्याकुल
आशा निराशा से लड़ी जा रही

Wednesday, September 15, 2010

खंडित गाथा

यूँ नयनों में उदासी है
ज्यूँ अंतरात्मा प्यासी है
सत्य सुख ये विनाशी है
केवल दुख ही अविनाशी है

आकंठ मम्तव से भरे हुए
हृदय मुरझाए और डरे हुए
कौन कहे जीवन साहसी है
ये वैधव्य सा नहीं मधुमासी है

नीरवता सम यहाँ कोलाहल है
क्षुब्ध जीवन ये हलाहल है
कौन कहे जीवन मृदुभासी है
क्रूर निष्ठूर ये आभासी है

खंडित स्वपनों की गाथा है
हर छण दुख ही साधा है
कौन कहे सुख चौमासी है
ये छणभंगूर ये अलपवासी है