Wednesday, December 31, 2008

एक किरण

एक सुनहरी किरण
मिटा देती है व्यापक अंधियारा

एक सुनहरी किरण
फैला देती है चारों और उजियारा

एक सुनहरी किरण
हर लेती है ओस की रवानी

एक सुनहरी किरण
भर देती है कलियों में जवानी

एक सुनहरी किरण
सज़ा देती है जाडों को

एक सुनहरी किरण
चमका देती है पहाडों को

एक सुनहरी किरण
ले जाती है गगन मैं दूर खगों को

एक सुनहरी किरण
कुलांचे भरवा देती है मृगों को

एक सुनहरी किरण
नव प्रभात को दिखलाती है

एक सुनहरी किरण
आशा का गीत गुनगुनाती है

एक सुनहरी किरण
दुखों के बाद खुशियाँ बतलाती है

एक सुनहरी किरण
हरदम नया संदेश दे जाती है

Thursday, December 11, 2008

पल पल

चुन चुन के कुछ पल मैं जोड़ता हूँ
मैं जीवन के गुलशन से गुल तोड़ता हूँ
इन गुलों का बन जाए कोई दस्स्ता
बिन मंजिल के ही कट जाए रास्ता
सोच के मैं मंजिल को छोड़ता हूँ
मैं जीवन के गुलशन से गुल तोड़ता हूँ

यादों की खुसबू मिल इनमें जाए
रस से जीवन पलों के भर जाए
पलों को कुछ मैं यूँ निचोड़ता हूँ
में जीवन के गुलशन से गुल तोड़ता हूँ

कभी इन पलों की मैं मदिरा बनाऊं
फ़िर पीकर इसे बहक ख़ुद मैं जाऊं
मैं इस से कई बार मुंह मोड़ता हूँ
मैं जीवन के गुलशन से गुल तोड़ता हूँ

पल खुशियाँ लाते हैं ,पल गम दे जाते हैं
कुछ पल हंसाते हैं ,कुछ पल रुलाते हैं
सर्द इन पलों को मैं ओढ़ता हूँ
में जीवन के गुलशन से गुल तोड़ता हूँ

Wednesday, December 3, 2008

करुणा

एक बूँद सी गहरी दबी
हृदय में जाने कब से छिपी
कभी बाहर आने ना पायी
अंधियारे मन में ही मुरझाई
इतनी सिमटी ऐसे सकुचाई
खो बैठी अपनी तरुणाई

एक बूँद जो गिरी होती सीप में
लो पा जाती उसके दीप में
बन जाती तब मोती अनमोल
जब देता कोई उसको खोल

एक बूँद जब बहार आती
चारों ओर उजास फैलाती
कनक से भी सुंदर कनका
फब्ती उर में बन कर मनका

पर ये हतभागी अब है जागी
भाग्य मिटा , कुछ रहा ना बाकी
अब जो नयनो से झर रही है
गिर कर मृदा में मिट रही है
कोई नही तुझे पहचानेगा
व्यर्थ लवणीय जल ही जानेगा
रहो छुपी तू जहां दबी थी
तेरी ऐसी ही सृष्टि रची थी

Tuesday, September 16, 2008

रिश्ता

तुमने पुकारा तो होगा
या मैंने सुना नहीं था
तुमने बुलाया तो होगा
या में आया नहीं था

साथ अगर में मांगता था
तो सहारा तुमको भी चाहिए था
होश अगर तुम को था
तो बेहोश में भी न था

क्यूँ हम इस तरह अकेले हैं
विराना लगता है , जबकि मेले हैं
क्या में अनजान था
या तुमको ही कुछ गुमान था

रिश्ता जरा है एहसास का
वरना कुछ ख़ास नहीं है
ख़ुद को झुठलाता रहता हूँ
वरना कुछ आस नहीं है

Monday, July 28, 2008

कमरा

उस कमरे में कुछ यादें हैं
उस कमरे में कुछ न बोलो
उस कमरे को बंद रहने दो
उस कमरे को अभी न खोलो

उस कमरे में बंद नही चंद सामान है
उस कमरे में बंद यादों का जहान है
उस कमरे में रखी कुछ बातें हैं
उस कमरे में रखी चंद मुलाकातें हैं
उस कमरे में आती आज भी आवाज है
उस कमरे में बजता सांसों का साज है
उस कमरे में बिन पंखों का परवाज है
उस कमरे में जिन्दगी का आगाज है
उस कमरे में इक हँसी रहती है
उस कमरे में इक खुशी रहती है
उस खुशी को वहीँ रहने दो
उस खुशी को मत तुम टटोलो
उस कमरे को बंद रहने दो
उस कमरे को अभी न खोलो

उस कमरे में मेहँदी से रचे हाथ है
उस कमरे में महकते हुए जज्बात है
उस कमरे में मिलन की रैनी है
उस कमरे में जुदाई की बेचैनी है
उस कमरे में तनहाइयों की भी सोगात है
उस कमरे में बाबस्ता इक ऐसी बात है
उस कमरे में गुडिया इक प्यारी है
उस कमरे में गूंजती किलकारी है
उस कमरे में बचपन का सपना है
उस कमरे में बंद एक पल अपना है

उस पल को मत जाने दो
उस पल की कीमत को मत तोलो
उस कमरे को बंद रहने दो
उस कमरे को अभी न खोलो

Monday, July 7, 2008

अंतर्मन

हर क्षण व्याप्त है मुझ में

एक गीत का मुखडा
एक गरीब का दुखडा
एक विरह का गान
एक अछूता भगवान्

हर क्षण घेरे रहती है मुझको

एक गहरी निशा
एक दबी हुई उषा
एक अनजानी पहचान
एक कल्पना की उड़ान

हर क्षण बांधे रखती है मुझको

एक अन्तिम अभिलाषा
एक मनुष्य प्यासा
एक अधजली आग
एक सावन का फाग

हर क्षण तोड़ती है मुझको

एक अधखिली कलि
एक मासूम की बलि
एक साथी अनजान
एक रिक्त स्थान

हर क्षण ठुकराता है मुझको

एक पुख्ता किनारा
एक दिलकश सहारा
एक कलवा बादल
एक मनवा पागल

Wednesday, June 25, 2008

फ़िर भोर होगी

एक दिन, एक रात सम्पुरण जिन्दगी का सार लिए है
भोर बचपन है,शांत एवं स्पस्ट
कोई भी पड़ सकता है
कोई भी जान सकता है, चेहरे का असली रूप

दिन लड़कपन, जवानी है पुरा उत्त्साह,पुरी उमंग
कुछ भी करा लो कर सकता है
सारा भार अपने कन्धों पे लेने को तैयार
एकदम स्वछंद बयार

शाम, अधेड़ अवस्था है
कुछ बोझिल,कुछ थकी हुई
कार्य की रफ़्तार कुछ धीमी है
चेरे पर तनाव भी है
शायद अब एहसास जागने लगा है
भोर और दिन का प्रसाद मिलने लगा है

रात, अंतिम पड़ाव
पुरे दिन का मूल्यांकन होगा
कुछ में शिकन,कुछ में राहत
शिकन वाला क्षण कसमसायेगा
परन्तु राहत नींद की आगोश में ले जायेगा
जब सुब कुछ भूल कर मनुष्य सपनो में खो जायेगा
फ़िर भोर होगी.....

Tuesday, June 24, 2008

मुसाफिर

कोई ठुकराता है कोई अपनाता है
मुसाफिर जिन्दगी का है
चलता जाता है,
बस चलता जाता है

कोई रहबर नही है
किसी की खबर नही है
जो मिलता है मुकद्दर से
बस वही अपनाता है
मुसाफिर जिन्दगी का है
चलता जाता है, बस चलता जाता है

कब कहाँ ख़तम हो जाए
ये कहा वो जनता है
दो और दो चार होते है
ये भी कहाँ मानता है
लुटता है जो भी पता है
मुसाफिर जिन्दगी का है चलता जाता है

कभी अनजाने कोई मिल जाए
बस संग हो लेता है
रख लेता है संभालकर
जो कोई कुछ देता है
क़र्ज़ कहाँ सबका चुका पता है
मुसाफिर जिन्दगी का है चलता जाता है