Monday, July 28, 2008

कमरा

उस कमरे में कुछ यादें हैं
उस कमरे में कुछ न बोलो
उस कमरे को बंद रहने दो
उस कमरे को अभी न खोलो

उस कमरे में बंद नही चंद सामान है
उस कमरे में बंद यादों का जहान है
उस कमरे में रखी कुछ बातें हैं
उस कमरे में रखी चंद मुलाकातें हैं
उस कमरे में आती आज भी आवाज है
उस कमरे में बजता सांसों का साज है
उस कमरे में बिन पंखों का परवाज है
उस कमरे में जिन्दगी का आगाज है
उस कमरे में इक हँसी रहती है
उस कमरे में इक खुशी रहती है
उस खुशी को वहीँ रहने दो
उस खुशी को मत तुम टटोलो
उस कमरे को बंद रहने दो
उस कमरे को अभी न खोलो

उस कमरे में मेहँदी से रचे हाथ है
उस कमरे में महकते हुए जज्बात है
उस कमरे में मिलन की रैनी है
उस कमरे में जुदाई की बेचैनी है
उस कमरे में तनहाइयों की भी सोगात है
उस कमरे में बाबस्ता इक ऐसी बात है
उस कमरे में गुडिया इक प्यारी है
उस कमरे में गूंजती किलकारी है
उस कमरे में बचपन का सपना है
उस कमरे में बंद एक पल अपना है

उस पल को मत जाने दो
उस पल की कीमत को मत तोलो
उस कमरे को बंद रहने दो
उस कमरे को अभी न खोलो

3 comments:

समयचक्र said...

ब्लागजगत में आपका स्वागत है और हिन्दी भाषा के प्रचार प्रसार में अपना अमूल्य योगदान दे.

शोभा said...

उस कमरे में कुछ यादें हैं
उस कमरे में कुछ न बोलो
उस कमरे को बंद रहने दो
उस कमरे को अभी न खोलो
बहुत सुन्दर। स्वागत है आपका।

Anonymous said...

us kamre me hi to sab kuchh hai ,uske darbaje par hamesha pahra lagana padta hoga, Bhabnao ko shabdo me bahut achchhi tarah bandha hai.