Monday, July 7, 2008

अंतर्मन

हर क्षण व्याप्त है मुझ में

एक गीत का मुखडा
एक गरीब का दुखडा
एक विरह का गान
एक अछूता भगवान्

हर क्षण घेरे रहती है मुझको

एक गहरी निशा
एक दबी हुई उषा
एक अनजानी पहचान
एक कल्पना की उड़ान

हर क्षण बांधे रखती है मुझको

एक अन्तिम अभिलाषा
एक मनुष्य प्यासा
एक अधजली आग
एक सावन का फाग

हर क्षण तोड़ती है मुझको

एक अधखिली कलि
एक मासूम की बलि
एक साथी अनजान
एक रिक्त स्थान

हर क्षण ठुकराता है मुझको

एक पुख्ता किनारा
एक दिलकश सहारा
एक कलवा बादल
एक मनवा पागल

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