लो फ़िर मैं आज इधर से गुजरा
फ़िर वही राह , वही घर, वही विराना
दूर दूर तक रास्तों पर बिछी धूल
और अक्श क़दमों के उन पर उभरे हुए
जैसे एक सदी गुजरी हो हमको मिले हुए
तू बदली , मैं बदला , बदला कसा हर फिकरा
बरबस तेरी याद आई
जब मैं इधर से गुजरा ।
Saturday, February 28, 2009
Friday, February 27, 2009
एक प्यारी सी मुस्कान के लिए
अचानक एक दिन यूँ मिली वो
जैसे कहीं जूही की कली खिली हो
छोटी सी पर सुंदर सी ऐसी लगी वो
जैसे सुंदर गुलाब की पंखुडी हो।
बन कर बदरी ऐसे छाई वो
सहरा में जीवन जैसे लाई हो.
सजती है होंठों पर मेरे हरदम
बन कर मुस्कान ऐसे छाई वो।
जैसे कहीं जूही की कली खिली हो
छोटी सी पर सुंदर सी ऐसी लगी वो
जैसे सुंदर गुलाब की पंखुडी हो।
बन कर बदरी ऐसे छाई वो
सहरा में जीवन जैसे लाई हो.
सजती है होंठों पर मेरे हरदम
बन कर मुस्कान ऐसे छाई वो।
Thursday, February 26, 2009
तुम जब गई........
तुम जब गई तो
इक हूक सी उठी दिल के अंदर
कतरा सा बहा आखों से
लगा जैसे भर गया समन्दर
कुछ आवाज़ सी आई
कहीं दूर गहराई से
डर लगा फ़िर हमको
अपनी ही परछाई से
भर गया मन
कुछ अनकहे से बोलों से
और मिट गई फ़िर
हंसी भी होंठों से
नींद ने जाने क्यूँ
दामन सपनों का छोड़ दिया
रास्तों ने भी जैसे
मंजिल से रिश्ता तोड़ लिया
रूह को मौत आई हो
जैसे जिस्म के अंदर
कतरा सा बहा आखों से
लगा जैसे भर गया समन्दर
इक हूक सी उठी दिल के अंदर
कतरा सा बहा आखों से
लगा जैसे भर गया समन्दर
कुछ आवाज़ सी आई
कहीं दूर गहराई से
डर लगा फ़िर हमको
अपनी ही परछाई से
भर गया मन
कुछ अनकहे से बोलों से
और मिट गई फ़िर
हंसी भी होंठों से
नींद ने जाने क्यूँ
दामन सपनों का छोड़ दिया
रास्तों ने भी जैसे
मंजिल से रिश्ता तोड़ लिया
रूह को मौत आई हो
जैसे जिस्म के अंदर
कतरा सा बहा आखों से
लगा जैसे भर गया समन्दर
Tuesday, February 17, 2009
अगर मालूम होता ......
अगर मालूम होता बरसात आखरी है हमारी
तो भीगते रहते कुछ देर और यूँ ही हम तुम
और जिस तरह रहती है हाथों में लकीरें
रहता पकड़े हथेली बरसात में तुम्हारी
अगर मालूम होता बरसात आखरी है हमारी
सजा लेता जेहन में यादें कुछ इस तरह
रूह बसती है जिस्मों में जिस तरह
जब भी चाहता सुनता यादें तुम्हारी
गुमान होता जो आखरी बातें हैं हमारी
अगर मालूम होता बरसात आखरी हैं हमारी
बड़ी मुश्किलों से पाया था तुझे
क्या मालूम था दे जाएगा दगा मुझे
सोचता रहता था तुम तो अपना हो
कभी न टूटेगा जो ऐसा सपना हो
मिलती नही क्या करुँ फ़िर चाहत तुम्हारी
अगर मालूम होता बरसात आखरी है हमारी
आखों में तेरी पत्ता था ख़ुद को लुटा कर
मुस्कान पे मरता था तेरी कुछ में इस कदर
दिखाने बाकी थे सपने अभी और कई सारे
पर हो न सके किस्मत के कुछ पल और हमारे
जगता कुछ देर और आंखों को तुम्हारी
अगर मालूम होता बरसात आखरी है हमारी
अगर मालूम होता बरसात आखरी है हमारी.......,
तो भीगते रहते कुछ देर और यूँ ही हम तुम
और जिस तरह रहती है हाथों में लकीरें
रहता पकड़े हथेली बरसात में तुम्हारी
अगर मालूम होता बरसात आखरी है हमारी
सजा लेता जेहन में यादें कुछ इस तरह
रूह बसती है जिस्मों में जिस तरह
जब भी चाहता सुनता यादें तुम्हारी
गुमान होता जो आखरी बातें हैं हमारी
अगर मालूम होता बरसात आखरी हैं हमारी
बड़ी मुश्किलों से पाया था तुझे
क्या मालूम था दे जाएगा दगा मुझे
सोचता रहता था तुम तो अपना हो
कभी न टूटेगा जो ऐसा सपना हो
मिलती नही क्या करुँ फ़िर चाहत तुम्हारी
अगर मालूम होता बरसात आखरी है हमारी
आखों में तेरी पत्ता था ख़ुद को लुटा कर
मुस्कान पे मरता था तेरी कुछ में इस कदर
दिखाने बाकी थे सपने अभी और कई सारे
पर हो न सके किस्मत के कुछ पल और हमारे
जगता कुछ देर और आंखों को तुम्हारी
अगर मालूम होता बरसात आखरी है हमारी
अगर मालूम होता बरसात आखरी है हमारी.......,
Saturday, February 7, 2009
मेरा वजूद
दरमियान हो दूरियां कितनी
नजदीकियों के सपने बुन ले
नहीं भरोसा तो न सही
वजूद पे मेरे यकीं कर ले
नज़रों में बस है वीरानी
जो चाहे तू तस्वीर भर ले
नहीं सिमट पाएंगी तेरी खुशियाँ
दिल पे मेरे यकीं कर ले
लाख छुपा इसे सीने मैं
चाहे गिरह से बाँध ले
फिसल जायेंगी हसरतें फ़िर भी
मुक़दर पे मेरे यकीं कर ले
कह न पाया जो कभी
बातों को मेरी तू समझ ले
नहीं भरोसा तो न सही
वजूद पे मेरे यकीं कर ले
नजदीकियों के सपने बुन ले
नहीं भरोसा तो न सही
वजूद पे मेरे यकीं कर ले
नज़रों में बस है वीरानी
जो चाहे तू तस्वीर भर ले
नहीं सिमट पाएंगी तेरी खुशियाँ
दिल पे मेरे यकीं कर ले
लाख छुपा इसे सीने मैं
चाहे गिरह से बाँध ले
फिसल जायेंगी हसरतें फ़िर भी
मुक़दर पे मेरे यकीं कर ले
कह न पाया जो कभी
बातों को मेरी तू समझ ले
नहीं भरोसा तो न सही
वजूद पे मेरे यकीं कर ले
Friday, February 6, 2009
वैसे, मैं नही हमराह तेरा
नाम नही ये भूलाना मेरा
वैसे, मैं नही हमराह तेरा
रास्ते पर जो धूल उड़ती है
खा के ठोकर तेरे पाँव से
उभर कर फ़िर तस्वीर बनती है
ले कर रंग धुप-छावों से
वो धुल हुं मैं ,और बिखरा हूँ यूँ ही
इन राहों मैं तेरे वास्ते
अक्श नही ये मिटाना मेरा
वैसे,मैं नही हमराह तेरा।
एहसास जो आते हैं बनके रुलाई
खारे पानी में भिगो लाये हैं तन्हाई
और देख ये जो चलती है पुरवाई
छूने से तुझे जब किसी की याद आई
वो याद हूँ में, और रहता हूँ यूँ ही
इन हवाओं मैं तेरे वास्ते
मिलना, नही ये अनजान मेरा
वैसे, मैं नही हमराह तेरा
चलना जितनी दूर तुम चल पाओगे
रुके गर मिले, जब थक जाओगे
मंजिल पे पहुँचने से जब घबराओगे
सहारा कोई बाहों का तुम तब पाओगे
वो सहारा हूँ में,और फैलाके बाहें यूँ ही
इन रास्तों मैं खड़ा हूँ तेरे वास्ते
सहारा नही ये ठुकराना मेरा
वैसे,मैं नही हमराह तेरा.
वैसे, मैं नही हमराह तेरा
रास्ते पर जो धूल उड़ती है
खा के ठोकर तेरे पाँव से
उभर कर फ़िर तस्वीर बनती है
ले कर रंग धुप-छावों से
वो धुल हुं मैं ,और बिखरा हूँ यूँ ही
इन राहों मैं तेरे वास्ते
अक्श नही ये मिटाना मेरा
वैसे,मैं नही हमराह तेरा।
एहसास जो आते हैं बनके रुलाई
खारे पानी में भिगो लाये हैं तन्हाई
और देख ये जो चलती है पुरवाई
छूने से तुझे जब किसी की याद आई
वो याद हूँ में, और रहता हूँ यूँ ही
इन हवाओं मैं तेरे वास्ते
मिलना, नही ये अनजान मेरा
वैसे, मैं नही हमराह तेरा
चलना जितनी दूर तुम चल पाओगे
रुके गर मिले, जब थक जाओगे
मंजिल पे पहुँचने से जब घबराओगे
सहारा कोई बाहों का तुम तब पाओगे
वो सहारा हूँ में,और फैलाके बाहें यूँ ही
इन रास्तों मैं खड़ा हूँ तेरे वास्ते
सहारा नही ये ठुकराना मेरा
वैसे,मैं नही हमराह तेरा.
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