तुम जब गई तो
इक हूक सी उठी दिल के अंदर
कतरा सा बहा आखों से
लगा जैसे भर गया समन्दर
कुछ आवाज़ सी आई
कहीं दूर गहराई से
डर लगा फ़िर हमको
अपनी ही परछाई से
भर गया मन
कुछ अनकहे से बोलों से
और मिट गई फ़िर
हंसी भी होंठों से
नींद ने जाने क्यूँ
दामन सपनों का छोड़ दिया
रास्तों ने भी जैसे
मंजिल से रिश्ता तोड़ लिया
रूह को मौत आई हो
जैसे जिस्म के अंदर
कतरा सा बहा आखों से
लगा जैसे भर गया समन्दर
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