Friday, February 6, 2009

वैसे, मैं नही हमराह तेरा

नाम नही ये भूलाना मेरा
वैसे, मैं नही हमराह तेरा

रास्ते पर जो धूल उड़ती है
खा के ठोकर तेरे पाँव से
उभर कर फ़िर तस्वीर बनती है
ले कर रंग धुप-छावों से
वो धुल हुं मैं ,और बिखरा हूँ यूँ ही
इन राहों मैं तेरे वास्ते
अक्श नही ये मिटाना मेरा
वैसे,मैं नही हमराह तेरा।

एहसास जो आते हैं बनके रुलाई
खारे पानी में भिगो लाये हैं तन्हाई
और देख ये जो चलती है पुरवाई
छूने से तुझे जब किसी की याद आई
वो याद हूँ में, और रहता हूँ यूँ ही
इन हवाओं मैं तेरे वास्ते
मिलना, नही ये अनजान मेरा
वैसे, मैं नही हमराह तेरा

चलना जितनी दूर तुम चल पाओगे
रुके गर मिले, जब थक जाओगे
मंजिल पे पहुँचने से जब घबराओगे
सहारा कोई बाहों का तुम तब पाओगे
वो सहारा हूँ में,और फैलाके बाहें यूँ ही
इन रास्तों मैं खड़ा हूँ तेरे वास्ते

सहारा नही ये ठुकराना मेरा
वैसे,मैं नही हमराह तेरा.

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