ये बेचारे शब्द हमारे
कितने तन्हा कितने सारे
बने रहे अर्थों में लकिन
भावः से हारे भावों से हारे
ह्रदय से निकले थे ये बोल
पर बना ना पाए कोई मोल
फिरते दर दर बन बंजारे
ये बेचारे शब्द हमारे
कितने तन्हा कितने सारे .......
भावुकता में जब बह गए
जो न कहना था सब कह गए
करुणा के लिए अब चित्कारे
ये बेचारे शब्द हमारे
कितने तन्हा कितने सारे ...........
कैसे बे-भाव का गरल मिटाऊं
कैसे इनको सरल बनाऊँ
कब चमकेंगे ये बनकर तारे
ये बेचारे शब्द हमारे
कितने तन्हा कितने सारे.......
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