Tuesday, January 27, 2009

ढलती जिन्दगी

कदम दर कदम जिन्दगी जा रही है
हर तरफ़ बिखरी हैं राहें
मंजिल नही नज़र आ रही है
कदम दर कदम जिन्दगी जा रही है

यादों के झरोखों से वक्त गुजरता है
मुठी मैं रेत की तरह फिसलता है
बहाने झूठी खुशिओं के बुला रही है
कदम दर कदम जिन्दगी जा रही है

कोई साथ दे इसका तो कैसे
ये महल हो एक सपनो का जैसे
हर राह मंजिल का गीत गा रही है
कदम दर कदम जिन्दगी जा रही है

यूँ तो कर ले भरोसा तू इसका
पर ये ही जाने ये दे साथ किसका
करता हूँ यकीं और ये इतरा रही है
कदम दर कदम जिन्दगी जा रही है

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