Tuesday, February 17, 2009

अगर मालूम होता ......

अगर मालूम होता बरसात आखरी है हमारी
तो भीगते रहते कुछ देर और यूँ ही हम तुम
और जिस तरह रहती है हाथों में लकीरें
रहता पकड़े हथेली बरसात में तुम्हारी
अगर मालूम होता बरसात आखरी है हमारी

सजा लेता जेहन में यादें कुछ इस तरह
रूह बसती है जिस्मों में जिस तरह
जब भी चाहता सुनता यादें तुम्हारी
गुमान होता जो आखरी बातें हैं हमारी
अगर मालूम होता बरसात आखरी हैं हमारी

बड़ी मुश्किलों से पाया था तुझे
क्या मालूम था दे जाएगा दगा मुझे
सोचता रहता था तुम तो अपना हो
कभी न टूटेगा जो ऐसा सपना हो
मिलती नही क्या करुँ फ़िर चाहत तुम्हारी
अगर मालूम होता बरसात आखरी है हमारी

आखों में तेरी पत्ता था ख़ुद को लुटा कर
मुस्कान पे मरता था तेरी कुछ में इस कदर
दिखाने बाकी थे सपने अभी और कई सारे
पर हो न सके किस्मत के कुछ पल और हमारे
जगता कुछ देर और आंखों को तुम्हारी
अगर मालूम होता बरसात आखरी है हमारी

अगर मालूम होता बरसात आखरी है हमारी.......,

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