Thursday, December 11, 2008

पल पल

चुन चुन के कुछ पल मैं जोड़ता हूँ
मैं जीवन के गुलशन से गुल तोड़ता हूँ
इन गुलों का बन जाए कोई दस्स्ता
बिन मंजिल के ही कट जाए रास्ता
सोच के मैं मंजिल को छोड़ता हूँ
मैं जीवन के गुलशन से गुल तोड़ता हूँ

यादों की खुसबू मिल इनमें जाए
रस से जीवन पलों के भर जाए
पलों को कुछ मैं यूँ निचोड़ता हूँ
में जीवन के गुलशन से गुल तोड़ता हूँ

कभी इन पलों की मैं मदिरा बनाऊं
फ़िर पीकर इसे बहक ख़ुद मैं जाऊं
मैं इस से कई बार मुंह मोड़ता हूँ
मैं जीवन के गुलशन से गुल तोड़ता हूँ

पल खुशियाँ लाते हैं ,पल गम दे जाते हैं
कुछ पल हंसाते हैं ,कुछ पल रुलाते हैं
सर्द इन पलों को मैं ओढ़ता हूँ
में जीवन के गुलशन से गुल तोड़ता हूँ

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