Tuesday, June 24, 2008

मुसाफिर

कोई ठुकराता है कोई अपनाता है
मुसाफिर जिन्दगी का है
चलता जाता है,
बस चलता जाता है

कोई रहबर नही है
किसी की खबर नही है
जो मिलता है मुकद्दर से
बस वही अपनाता है
मुसाफिर जिन्दगी का है
चलता जाता है, बस चलता जाता है

कब कहाँ ख़तम हो जाए
ये कहा वो जनता है
दो और दो चार होते है
ये भी कहाँ मानता है
लुटता है जो भी पता है
मुसाफिर जिन्दगी का है चलता जाता है

कभी अनजाने कोई मिल जाए
बस संग हो लेता है
रख लेता है संभालकर
जो कोई कुछ देता है
क़र्ज़ कहाँ सबका चुका पता है
मुसाफिर जिन्दगी का है चलता जाता है

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