Tuesday, September 15, 2009

मुझे इतनी दूर तक जाना है

मुझे इतनी दूर तक जाना है
जहाँ फिर इक दिलरुबा मिले
जाके ऐसी मज़िल को पाना है
मुझे इतनी दूर तक जाना है

जहाँ ना कोई रुसवाई हो
और हो ना कोई तन्हाई
जहाँ मिले ना बेवफा कोई
जहाँ मिले ना कोई हरजाई
जाके वहाँ साज़-ए-दिल बजना है
मुझे इतनी दूर तक जाना है.......

टूटे दिल का ना हो मंज़र
ज़ुबान कोई ना हो खंज़र
जहाँ हर शख्स प्यार हो
जहाँ हर कोई हमारा हो
जाके वहाँ हाल-ए-दिल सुनना है
मुझे इतनी दूर तक जाना है.....

तलाश जाकर जहाँ रुक जाए
और जिंदगी मुकाम इक पा जाए
जहाँ जीना ना चाहूं मैं
जहाँ मुझे मौत आ जाए
जाके वहाँ घर-ए-गुलशन बसाना है
मुझे इतनी दूर तक जाना है............

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