Wednesday, June 24, 2009

कवि हाट

एक एक शब्द गूँथ के

माला कविता की लाया हूँ

ले लो, ले लो, भाव ये सुंदर

मैं इन्हें बेचने आया हूँ


ले लो जो तुम मैं बनूँ अभारी

इनका नही मोल कोई भारी

करुणा और प्रेम से ले लो

मैं कवि, नही कोई व्यापारी


ओ मानुष तू इसको ले ले

ये मनुजता बन जाएगी

भर देगी करुंण प्रेम से

ये सब वैर भाव मिटाएगी


ओ साथी तू इसको ले ले

ये हरपल साथ निभाएगी

हर शत्रु फिर मित्र बनेगा

ये इस तरह कंठ लगाएगी


ओ राही तू इसको ले ले

ये हर राह आसान बनाएगी

बनके तेरी मार्गदर्शिका

ये मज़िल तक पहुँचाएगी


ओ बालक तू इसको ले ले

ये खेल-खेल में सिखाएगी

जीवन में सही ग़लत क्या

ये इसका बोध कराएगी


वो श्रमिक तू इसको ले

ये श्रम मैं हाथ बटाएगी

मिल जाएगा फल श्रम का

ये यूँ आवाज़ उठाएगी


वो नेता तू इसको ले ले

ये तेरा भाषण बन जाएगी

कर सके जो कथन तू इसका

ये निश्चित जीत दिलाएगी


ओ प्रेमी तू इसको ले ले

ये तेरा दिल बहलाएगी

कोमल कोमल अर्थों से अपने

ये प्रेमिका को भी मनाएगी


ओ विरहन तू इसको ले ले

ये रात्रि भी कट जाएगी

किसी देश हो प्रियतम तेरा

ये उन तक संदेश पहुँचाएगी


बेच आऊंगा आज मैं सारे

यह कह कर इनको लाया हूँ

ले लो, ले लो, भाव ये सुंदर

मैं इन्हें बेचने आया हूँ


2 comments:

ओम आर्य said...

bahut hi sundar bhaw .......jisame kavi man ki saree baate hai ...

Pokhriya said...

sarhana ke liye shukriya om ji :)