जब जीवन की शाम ढलेगी
मृत्यु नींद सी जब चढ़ेगी
जब विलुप्त स्वपन हो जाएँगे
हम तुमको तब भी चाहेंगे
नयन दृष्टि जब खो जाएगी
सृष्टि भी ओझल हो जाएगी
जब रंग काले हो जाएँगे
हम तुमको तब भी चाहेंगे
बास सुबास जब खो रही होगी
रसना स्वाद पर रो रही होगी
जब कर्ण बहरे हो जाएँगे
हम तुमको तब भी चाहेंगे
ज़र ज़र देह जब लेटी होगी
किस्मत के संग हेठी होगी
जब प्राण पखेरू उड़ जाएँगे
हम तुमको तब भी चाहेंगे
लोक जब परलोक हो जायेगा
मन भी वापस ना आ पायेगा
जब निपट अकेले हो जाएँगे
हम तुमको तब भी चाहेंगे
संदेह यदि फिर भी है तुमको
तो सुनो यह कसम है हमको
यदि कोई दूसरा जीवन पाएँगे
हम तुमको तब भी चाहेंगे
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