उनिन्दी आखों को मसलता
मैं स्वपन अपने खोजता हूँ
भूल बैठा था जिसे
वो अक्ष अपना खोजता हूँ
तू तो मेरा था ही कब
जो आज तुझ को कुछ कहूँ
जीवन के सब त्रास मेरे
तुझको क्या मैं रहूं ना रहूं
कर नयोच्छवर तुझ पे सबकुछ
खाली मन ने पाया क्या
होकर रहा बस एक तेरा
कभी दूसरे को अपनाया क्या
तुम तो ठहरी रूपमया
भटकाना मुझको फ़ितरत मैं था
मुझ पे था चाहत का साया
भटक जाना किस्मत मैं था
दोष मेरा बस यही है
निर्दोष मैं बन कर रहा
मदहोश तेरे आगोश में
बेहोश मैं बन कर रहा
अब जो आया होश में तो
मैं सत्य अपना जनता हूँ
भूल चुका था मैं जिसे
वो अक्ष अपना पहचानता हूँ
2 comments:
ati uttam
Bahut bahut Dhanyawaad apne padha or sarha.
Post a Comment