Monday, April 27, 2009

ढलती जिन्दगी

कदम दर कदम ज़िंदगी जा रही है
हर तरफ़ बिखरी हैं राहें
मंज़िल नही नज़र आ रही है
कदम दर कदम ज़िंदगी जा रही है

यादों के झरोखों से वक़्त गुज़रता है
मुठ्ठीमें रेत की तरह फिसलता है
बहाने झूठी खुशियों के बुला रही है
कदम दर कदम ज़िंदगी जा रही है

कोई साथ दे इसका तो कैसे
ये महल हो एक सपनो का जैसे
हर मोड़ मंज़िल का गीत गा रही है
कदम दर कदम ज़िंदगी जा रही है

यूँ तो कर ले भरोसा तू इसका
पर ये ही जाने ये दे साथ किसका
हमको तो यूँ ही बहलाए जा रही है
बस चन्द यादों से सहलाए जा रही है
करता हूँ यकीन ओर ये इतरा रही है
कदम दर कदम ज़िंदगी जा रही है

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