Friday, May 8, 2009

किनारे-किनारे

मिली मंज़िल किसी को
तो कोई तोड़ लाया है तारे
सब डूबे तैरे मौज से लेकिन
चलता रहा मैं किनारे -किनारे

ख्यालों की कलियाँ खिलती कहाँ
निरालों को दुनिया मिलती कहाँ
हवा के महल आरज़ू के सहारे
गिरे तो टूटे, कुछ थे यूँ नज़ारे
सब डूबे तैरे......

बनते तो तब जब हम बिगड़ते
पाते ही कुछ जब हम झगड़ते
बस करते रहे दूर ही से इशारे
जीते ना कुछ ना कुछ हैं हारे
सब डूबे तैरे...

हॅश्र मेरा होना क्या था
मिला क्या था, खोना क्या था
फ़ुर्सत की घड़ियों मैं गिनता था तारे
आया था यूँ ही और यूँ ही गया रे
सब डूबे तैरे ........

No comments: