Saturday, August 28, 2010

आरज़ू

रुकते नही चलते तो आख़िर हैं सभी
झुकते नही यूँ तो हौंसले मेरे भी कभी
पर परवाज़ को मेरे कुछ तो उँचा कर दे
एक बार तो मुक़दर मेरा , मेरा कर दे

जन्नत-ए-दुनिया है कहते हें सभी हम से
पर हमको तो दोजख से लगे सब सपने
शिकायत नही पर कोई सपना हक़ीक़त कर दे
एक बार तो मुक़दर मेरा, मेरा कर दे

रंग कोई तो नज़रों में, मेरे भर दे
टुकड़े चंद रोशनी के मेरे हवाले कर दे
क्या पता फिर ना आऊं दुनिया में दोबारा
एक बार तो मुक़दर मेरा, मेरा कर दे

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