Wednesday, June 25, 2008

फ़िर भोर होगी

एक दिन, एक रात सम्पुरण जिन्दगी का सार लिए है
भोर बचपन है,शांत एवं स्पस्ट
कोई भी पड़ सकता है
कोई भी जान सकता है, चेहरे का असली रूप

दिन लड़कपन, जवानी है पुरा उत्त्साह,पुरी उमंग
कुछ भी करा लो कर सकता है
सारा भार अपने कन्धों पे लेने को तैयार
एकदम स्वछंद बयार

शाम, अधेड़ अवस्था है
कुछ बोझिल,कुछ थकी हुई
कार्य की रफ़्तार कुछ धीमी है
चेरे पर तनाव भी है
शायद अब एहसास जागने लगा है
भोर और दिन का प्रसाद मिलने लगा है

रात, अंतिम पड़ाव
पुरे दिन का मूल्यांकन होगा
कुछ में शिकन,कुछ में राहत
शिकन वाला क्षण कसमसायेगा
परन्तु राहत नींद की आगोश में ले जायेगा
जब सुब कुछ भूल कर मनुष्य सपनो में खो जायेगा
फ़िर भोर होगी.....

Tuesday, June 24, 2008

मुसाफिर

कोई ठुकराता है कोई अपनाता है
मुसाफिर जिन्दगी का है
चलता जाता है,
बस चलता जाता है

कोई रहबर नही है
किसी की खबर नही है
जो मिलता है मुकद्दर से
बस वही अपनाता है
मुसाफिर जिन्दगी का है
चलता जाता है, बस चलता जाता है

कब कहाँ ख़तम हो जाए
ये कहा वो जनता है
दो और दो चार होते है
ये भी कहाँ मानता है
लुटता है जो भी पता है
मुसाफिर जिन्दगी का है चलता जाता है

कभी अनजाने कोई मिल जाए
बस संग हो लेता है
रख लेता है संभालकर
जो कोई कुछ देता है
क़र्ज़ कहाँ सबका चुका पता है
मुसाफिर जिन्दगी का है चलता जाता है